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जैनहितैषी
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गम्बर । पृष्ठ ३७ में लेखकने लिखा है कि “ जितनी प्रतिमायें इस देशमें अर्ध पद्मासनस्थ हैं वे सभी श्वेताम्बरोंकी हैं।" बलिहारी ! इस नियमसे तो आप दिगम्बरोंकी हजारों प्रतिमाओंको अपनी बनालेंगे । क्योंकि दिगम्बर मन्दिरोंमें भी अर्ध पद्मासनस्थ प्रतिमा
ओंकी कमी नहीं है। पुस्तकके लिखनेमें यतिजी महाशयने इसमें सन्देह नहीं कि परिश्रम किया है; परन्तु हमारी समझमें आपके लिखनेका ढंग अच्छा नहीं है। आप इतिहास तो लिखते हैं; परन्तु आग्रह और पक्षपातको साथ रखते हैं । दिगम्बरसम्प्रदाय पर तो आपकी बड़ी कड़ी दृष्टि रहती है। इसके निदर्शनस्वरूप आप कुछ पुस्तकें भी लिख चुके हैं। हमारी प्रार्थना है कि आप श्वेताम्बर-दिगम्बरके पक्षको छोड़कर शुद्ध इतिहासकी आलोचना करें तो अच्छा हो। इतिहासप्रेमियोंको यह पुस्तक अवश्य पढ़ना चाहिए । पुस्तक पर मूल्य नहीं लिखा ।
जीवनचरित्र आचार्य श्रीमोतीरामजीका । लेखक, जैनमुनि पं० ज्ञानचन्द्रजी । प्रकाशक, लाला कुन्दनलाल चिरंजीलाल जैन मु० भुल्लरहेड़ी, नाभा स्टेट । स्थानकवासी जैनसम्प्रदायमें आचार्य मोतीरामजी नामके एक साधु हो गये हैं । वे अच्छे क्रियावान्
और सुयोग्य उपदेशक थे । संवत् १८८० में उनका जन्म हुआ था और १९५८ में देहावसान । इस ६० पृष्ठकी पुस्तकमें उन्हींका जीवनचरिन पुरानी पद्धतिसे लिखा गया है । पुस्तकका अधिकांश धर्मके स्वरूप और उपदेशसे भरा हुआ है, चरितका अंश बहुत ही थोड़ा है । महात्माओंके चरितोंमें उनके अन्तरंग
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