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पुस्तक- परिचय |
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लेकर स्वर्गीय बाबू बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्यायने ' राजसिंह' नामक उपन्यासकी रचना की है। यह बतलानेकी आवश्यकता नहीं कि ऐसे उपन्यासोंमें लेखक दो चार प्रधान ऐतिहासिक घटनाओंकी रक्षा करके शेष सारी बातें अपनी कल्पनासे लिखता है । अपनी रचनाको सरस, प्रभावोत्पादक बनानेके लिए वह नये नये पात्रोंकी स्थानोंकी, प्रसङ्गोंकी कल्पना करनेमें जरा भी कुण्ठित नहीं होता है । तद्नुसार 'राजसिंह' में भी कल्पनाप्रसूत बातोंकी कमी नहीं है । यह पुस्तक उक्त उपन्यासको ही संक्षिप्त करके लिखी गई है; परन्तु लेखक महाशय ने इसे 'सच्चा ऐतिहासिक वृत्तान्त' समझ लिया है और यह लिखनेकी भी आवश्यकता नहीं समझी है कि 'राजसिंह' के आधारसे इसकी रचनाकी गई है !- पहला भ्रम है और दूसरा अपराध है । आशा है कि लेखक महाशय आगे इन गल्तियोंको सुधार लेंगे । कोई भी ' ऐतिहासिक वृत्तान्त ' और सो भी 'सच्चा' उपन्यासोंपर से नहीं लिखा जा सकता, इसके लिए टाड राजस्थान जैसे इतिहासग्रन्थ ही उपयोगी हो सकते हैं । पुस्तक अच्छी, देशाभिमानको जागृत करनेवाली, और शिक्षाप्रद है; भाषा भी बुरी नहीं है । स्त्रियोंको खास तौर से पढ़ना चाहिए ।
शारदाविनोद-यह एक मासिकपत्र है । शारदाभवन पुस्त - कालय, दीक्षितपुरा जबलपुर से प्रकाशित होता है । हितैषीके साइज्ञके ५० पृष्ठ रहते हैं । वार्षिक मूल्य डेढ़ रुपया है । अबतक इसके तीन अंक निकल चुके हैं। इसमें छोटी छोटी मनोरंजक और शिक्षाप्रद गल्पें प्रकाशित हुआ करती हैं । कोई कोई गल्प बहुत अच्छी
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