Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 61
________________ पुस्तक- परिचय | ७२९. कर लेना चाहिए- “ समाचारपत्र अबतक उनके ( न्या० दि० पं० पन्नालालजीके) विषयमें सर्वथा चुप देखे जाते हैं । न जाने इनके और कितने भाईबन्द हमारे भोले भाइयोंको ठग रहे होंगे। हम राह देख रहे हैं कि उनका भी कच्चा चिट्ठा शीघ्र ही प्रकाशित हो । प्रान्तिकसभाका और सहयोगीका यह प्रस्ताव हमें पसन्द न आया कि प्रतिष्ठाचार्योंकी कमी है, इसलिए उनके बढ़ानेका यत्न किया जाय । कौन कह सकता है कि नये प्रतिष्ठाचार्य भी न्यायदिवाकर जीके ही भाईबन्द न बन जायेंगे और निःस्वार्थदृष्टिसे काम करने - वाले होंगे ? सभाको इसके बदले यह प्रस्ताव पास करना था कि अब मन्दिरों और प्रतिष्ठाओंकी जरा भी जरूरत नहीं है, इसलिए कोई भी भाई यह कार्य न करे और यदि कहीं वास्तवमें जरूरत हो तो वहाँके भाई ऐसे स्वार्थियों से सावधान रहें । हम आशा करते हैं कि जैनप्रभातको जैनसमाजकी ओरसे अच्छा आश्रय मिलेगा और वह नियमितरूपसे अपने दर्शन दिया करेगा । ग्राहक होनेवालोंको ' मैनेजर, जैन प्रभात, चन्दाबाड़ी, बम्बई नं० ४ इस ठिकाने से पत्र लिखना चाहिए । "" 1 कुमारपाळचरित । लेखक, मुनि ललितविजय । प्रकाशक, । अध्यात्मज्ञानप्रसारक मण्डल, चम्पागली - बम्बई । मूल्य छह आने । गुजरातर्मे महाराज कुमारपाल नामके एक प्रसिद्ध राजा हो गये हैं। वे चौलुक्यवंशीय ( सोलंकी ) थे। उनकी राजधानी अनहिलबा में थी। उनके राज्यका विस्तार बहुत बड़ा था । दूर दूर तक उनकी आज्ञाका. पालन होता था । विक्रमसंवत् ११४९ में उनका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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