Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 53
________________ समालोचनाकी आलोचना। ७२१ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm और स्वयं अफीमका भी एक बहुत बड़ा भाग, इन तीनोंको मिला दिया जाय तब कहीं यह कमी पूरी हो सकती है। अच्छा तब यह सोना-चाँदी यहाँ क्यों आता है ? इसके आनेका मुख्य कारण यह है कि हमको व्यापार और सरकारी कामकाज चलानेके लिए सिक्कोंकी ज़रूरत है। पहले सिक्कोंकी इतनी ज़रूरत न थी। पहले भूमिके लगान या मालगुजारीमें अन्नका कुछ भाग दिया था, परन्तु ब्रिटिश गवर्नमेन्ट इस लगानको सिकोंमें लेने लगी। इसी कारण सिकोंकी जरूरत बहुत बढ़ गई और सिक्कोंके लिए सोना-चाँदीकी जरूरत पड़ी । भारतवर्षका विदेशोंके साथ व्यापार भी बढ़ गया ( यद्यपि इससे भारतवर्षको कुछ लाभ न हुआ) और इससे भी सिक्कोंकी ज़रूरत बढ़ गई । सन् १८०१ से सन् १८६९ तक भारतवर्षमें जितना सोना-चाँदी विदेशोंसे आया यदि उसमें वह सोना चाँदी जो इसी समयमें विदेशोंको गया, घटा दिया जाय, तो ३३५४७७१३४ पौंडका सोना-चाँदी बचता है, अर्थात् इतने पौंडका सोना-चाँदी भारतवर्षों ज़ियादा आया । इसमेंसे २६५६५२७४९ पौंडके सोने-चाँदी के सिक्के बनाये गये । सिक्कोंकी इस रकम में वे सिक्के शामिल नहीं 'हैं जो सन् १८०१ से सन् १८०७ तक मद्रासमें बने और सन् ___* मूल पुस्तकमें पौंडमें ही मूल्य दिया है। सुभीतेके कारण हमने इसके रुपये नहीं बनाये । पाठक जानते ही हैं कि एक पौंड १५) का होता है। बीस शिलिंगका एक पौंड और बारह सका एक शिलिंग होता है । यह रकम और आगेकी और रकमें श्रीयुत दादा भाई नौरोजीने पार्लियामेंट के सरकारी नक्शों से ली हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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