Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 56
________________ जैनहितेषी २०००००००० पौंडके सिक्के बचे। इसमेंसे भी, यद्यपि सिक्कोंके गलानेमें सैकड़ा पीछे २ पौंडका नुकसान होता है, परन्तु फिर भी हम मान लेते हैं कि ५००००००० पौंडके सिक्कोंको गला कर फिर सोना-चाँदी बना लिया गया होगा। इस रकमको भी घट देनेसे केवल १५००००००० पौंडके सिक्के रह गये। अब इस रकमको और जितना सोना-चाँदी घिस गया (अर्थात् ६६०००००० या कमसे कम ५००००००० पौंड ) को जोड़कर-यह जोड़ २०००००००० पौंड हुआ-भारतवर्षमें कुल जितना सोना-चाँदी आया उसमेंसे घटा दो । घटानेसे १३५०००००० पौंडका सोना चाँदी सिक्कोंके अतिरिक्त देशकी बाकी तमाम जरूरतोंके लिए बचा । भारतवर्षकी जन-संख्या, उस समय २०००००००० थी। इस जनसंख्या पर १३५०००००० पौंडको बाँट दो, तो १९ वर्षके समय तक सिक्कोंके अतिरिक्त और अनेक कामोंके लिए प्रति मनुष्य १३ शिलिंग ६ पेंस ( १३ ३ आना ) से भी कम सोना-चाँदी पड़ा! एक मनुष्यके लिए ६९ वर्षमें केवल १३६ आनेका सोना-चाँदी कितनी छोटी रकम है !! यदि कुल सोना-चाँदी अर्थात् ३३५०००००० पौंडको भी जन-संख्या पर फैला दिया जाय, तो भी १९ वर्षमें ३३ शिलिंग ६ पेन एक मनुष्यकी तमाम ज़रूरतोंके लिए हुए; इसमेंसे हमने सिक्कोंके घिसनेकी भी रकम नहीं घटाई । अब आप इस रकमका मिलान यूनाइटेड किंग्डम ( अँगरेजोंकी विलायत-इंग्लेंड, वेल्स, स्काटलैंड और आयरलैंड ) के साथ कीजिए । वहाँपर सिक्कोंके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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