Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 55
________________ समालोचनाकी आलोचना । ७२३ शिलिंगका नुकसान हो जाता है और सिक्का ऐसके सिक्कोंके त्रिसनेसे सैकड़ा पीछे ३७ सिक्स-पेंसका नुकसान हो जाता है। जिस नक्शेपरसे यह हिसाब लिया गया है उसमें यह नहीं लिखा है कि इतना नुकसान कितने समय में होता है । भारतवर्ष में सिक्कोंके बिसनेसे इससे कहीं जियादा नुकसान होता होगा; क्योंकि इस देशमें सरकारी कामों के लिए सिक्कोंका इधरसे उधर आनाजाना बहुत होता है और इसके सिवाय यहाँके लोग भी सिक्कोंको जियादा सख्ती से काममें काम लाते हैं और सिक्कोंका उपयोग भी इस देश में बहुत होता है । एक हाथसे दूसरे हाथमें जानेसे और उठाने रखनेसे सिक्के बसते जाते हैं और उनकी धातु कम होती जाती है । मिस्टर हैरीसनने हिसाब लगाया था कि भारतवर्षमं प्रतिवर्ष १० लाख पौंडका सोना-चाँदी सिक्कामसे घिस जाता है ! 1 " अब हम यह देखते हैं कि जो सोना-चाँदी सन् १८०१ से लेकर १८६९ ईसवी तक अर्थात् ६९ वर्षमें आया उसमें से कितने सोने-चाँदी के सिक्के बने, कितना सोना चाँदी सिक्कोंमेंसे घिस घिस कर बरबाद हो गया और कितना सोना चाँदी हमारी अन्य आवश्यकता -- ओके लिए बच रहा । हम ऊपर लिख आये हैं कि इन ६९ वर्षोंमें ३३५४७७१३४ या लगभग ३३५०००००० पौंडका सोना-चाँदी देशमें जियादा आया और इसमेंसे लगयग २६६०००००० पौंडके सिक्के बने। सिक्कोंमेंसे ६६०००००० पौंडका सोना-चाँदी ३९ वर्ष में घिस गया होगा । इस रकमको निकाल देनेसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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