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जैनहितैषी -
लिखी है । उसका नाम है Poverty and un-British Rule in India । यह पुस्तक सन् १९०१ ईसवी में लंडनमें प्रकाशित हुई थी। इसी पुस्तक में एक जगह ठीक इसी विषयपर विचार किया गया है और आपकी बातका उत्तर इस प्रकार दिया है । यहाँपर हम उस अंशका आशयानुवाद देते हैं;
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" बहुधा कहा जाता है कि भारतवर्ष में विदेशों से बहुत सोनाचांदी ( Bullion ) आया है, इस लिए भारतवर्ष बहुत धनवान् हो गया है । अब देखिए कि असलियत क्या है ।
" सबसे पहली बात तो यह है कि भारतवर्षमें विदेशोंसे जो चाँदी आई है वह हमको लाभके रूपमें नहीं मिली । विदेशोंसे जो माल इस देशमें आता है वह उस मालसे कम है जो यहाँसे विदेशोको जाता है और उसपर जो कुछ मुनाफा मिलता है । अर्थात् जितना माल यहाँ से बाहर जाता है उतना बाहरसे नहीं आता । यदि यह कहा जाय कि विदेशोंसे जो चाँदी हमको मिलती है वह मालकी इसी कमीको पूरा करनेके लिए मिलती है, तो यह भी ठीक नहीं है । क्योंकि यह कमी तो बहुत बड़ी है । जितनी ची यहाँ पर आती है वह इस कमीको देखते हुए बहुत ही थोड़ी है । हम पहले भी कह चुके हैं कि विदेशोंसे ( जिसमें विदेशों से आया हुआ सब सोना-चाँदी विदेशोंको गये हुए माल और उसके मुनाफ़ेसे बहुत ही कम है । यह कमी इतनी है कि विदेशमें गये हुए मालपर जो मुनाफा हमको मिलता है, सरकारको अफ़ीमसे
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आनेवाला माल भी शामिल है )
जितनी आमदनी होती है
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