Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ समालोचनाकी आलोचना । ७१७ जो यहाँसे विदेशोंको चला जाता है । इन दोनों भागोंका अलग अलग हिसाब लगाना पड़ेगा । विदेशी आमदनीमें वह माल या रुपया शामिल है जो हमको विदेशोंसे मिलता है और इसी तरह विदेशी वर्चसे उस माल या रुपयेसे मतलब है जो यहाँसे विदेशोंको चला जाता है। विदेशी आमदनी और खर्चमें ये मद्द शामिल हैं:विदेशी आमदनी ( १ ) भारतवर्षसे विदेशोंको जो (तिजारती ) माल जाता है उसकी विक्रीकी आमदनी । ( इसी मालमें सोना-चाँदी भी शामिल है।) (२) भारतवर्षमें जो रुपया या माल विदेशोंसे कर्जके तौर पर आता है । भारतवर्ष विदेशोंसे बहुत रुपया कर्ज लेता रहता है । यह रुपया रेलों, कारखानों इत्यादि अनेक कामोंमें लगा हुआ है। (३) वह रुपया जो विदेशी यात्री भारतवर्षमें आकर खर्च कर जाते हैं। । ( ४ ) वह रुपया जो विदेशी लोग भारतवासियोंको दान कर देते हैं, वह रुपया जो विदेशी व्यापारी भारतवर्षको भेजते हैं और वह रुपया जो विदेशोंमें गये हुए भारतवासी इस देशमें जिते हैं। विदेशी खर्च( १ ) विदेशोंसे जो माल इस देशमें आता है उसका मूल्य । इसी मालमें सोना-चाँदी भी शामिल है । ) । (२) भारतवर्षमें जो विदेशी मूलधन लगा हुआ है उसका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100