________________
७१६
जैनहितैषीmmmmmmmmmmmar यदि किसी मनुष्यके पास गुलाम हों, तो वे भी धन हैं। धनमें मनुष्यकी निजी शक्तियाँ और गुण शामिल नहीं हैं, यहाँ तक कि वे शक्तियाँ भी शामिल नहीं हैं जिनके द्वारा मनुष्य अपना निर्वाह करता है; क्योंकि ये सब चीजें मनुष्यके अंदर हैं । धनमें ( जरूरतकी) केवल वे ही चीजें शामिल हैं जो मनुष्यके बाहर हैं।"
अब विचार कीजिए कि सोने-चांदीके अतिरिक्त और भी कितनी ही महत्त्वकी चीजें हैं जिनका धनमें शुमार होना चाहिए। यह तो हुई सामान्य बात । अब यह देखना चाहिए कि भारतवर्षके धनके विषयमें इन बातोंपर किस तरह विचार करना चाहिए । क्योंकि भारतवर्षके धनके विषयमें धनसंबंधी कुछ बातें ऐसी भी हैं जिनका विचार दूसरे देशोंके धनका अंदाजा लगानेमें नहीं करना पड़ता; जैसे इंग्लेण्डके ' इंडिया आफिस' इत्यादिका खर्च जो हमको देना पड़ता है। अब यह पता लगानेके लिए कि भारतवर्षका धन बढ़ रहा है या घट रहा है, हमको भारतवर्षकी आमदनी और खर्चका हिसाब लगाना चाहिए । भारतवर्षकी आमदनी और खर्च दो तरहके हैं, एक तो देशी और दूसरे विदेशी । देशी आमदनीमें वे चीजें ( पैदावर ) शामिल हैं जो भारतवर्षमें ही पैदा होती हैं और देशी खर्चसे उस खर्चसे मतलब है जो देशी चीजोंके पैदा करनेमें पड़ता है। भारतवर्षकी पैदावर भी दो विभागोंमें बाँटी जा सकती है, एक तो वह भाग जो इसी देशमें रह जाता है अर्थात् भारतवासियोंके ही काममें आजाता है, और दूसरा वह भाग
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org