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अंजना ।
रस्तेके भीतर हाथोंसे,
छिटक पड़ा बालक बलवान ॥ ( १०४ )
हा हा कर सब नीचे आये,
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देखा तो खुश था बालक ।
चोट न उसको कुछ आई थी, फूट गया गिरिपत्थरतक ॥।
( १०५ )
Fast कर प्यार साथ ले,
प्रतिसूरज निजघर आया ।
सती अंजनाने निज शिशुका,
यहाँ आय आनँद पाया ॥ ( १०६ )
आनँद मना रही थी कुछ कुछ,
पर यह क्या आया संवाद । जिसको सुन हो गई अंजना,
मूर्च्छित मनमें पाय विषाद || ( १०७ )
" विजयश्रीको पाकर आये,
वीर पवनजय निज घरपर । नहीं अंजनाको जब पाई,
चले गये वन, घर तजकर ॥ (१०८)
अपनी भगिनीकी तनयाको, प्रतिसूरजने किया सचेत ।
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