________________
जैनाहितैषी
mmmm
इतिहास प्रसङ्ग ।
(२७) नीतिसारके कर्ता इन्द्रनन्दि ।
इन्द्रनन्दि' नामके धारक अनेक आचार्य और भट्टारक हो गये हैं जिन सबके समयादिकका प्रायः अभीतक कोई ठीक निश्चय नहीं हुआ ।
नीतिसार' अथवा ' नीतिसारसमुच्चय' नामक ग्रंथके कर्ता भी एक — इन्द्रनन्दि' हुए हैं । उनका भी समय अभीतक अनिश्चित है। परन्तु वे सोमदेवाचार्यके पीछे ज़रूर हुए हैं। क्योंकि उन्होंने, उक्त नीतिसारमें, जिनसेन गुणभद्राद्रिक उन आचार्योंका उल्लेख करते हुए जिनके रचेहुए शास्त्र, उनकी दृष्टिमें, माने जानेके योग्य हैं, ' सोमदेव' का भी नामोल्लेख किया है। यथाः--
“ अकलंको महाप्राज्ञः सोमदेवो विदाम्बरः।
प्रभाचंद्रो नेमिचंद्र इत्यादिमुनिसत्तमैः ॥ ७० ॥" ' सोमदेव' नामके दो विद्वान् आचार्य हुए हैं। एक यशस्तिलक 'के कर्ता और दूसरे ‘शब्दार्णवचंद्रिका' के रचयिता । पहले विक्रमकी ११ वीं शताब्दीमें और दूसरे १३ वीं शताब्दीमें हुए हैं । इसमें कोई संदेह नहीं है कि उक्त इन्द्रनन्दि यशस्तिलकके क के बाद हुए हैं और बहुत संभव है कि वे शब्दार्णवचंद्रिकाके रचयिताके भी पीछे हुए हों । क्योंकि उनके नीतिसारसे समयकी जिस स्थितिका बोध होता है वह उन्हें १३ वीं शताब्दीमें या
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org