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जैनहितैषी -
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बनाया हुआ है और कब बना है, इसका निर्णय होनेकी ज़रूरत है । विद्वानोंको इस विषयमें प्रयत्न करना चाहिए ।
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भद्रबाहुका समाधि स्थान ।
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मिस्टर बी. लेविस राइस साहबने अपनी ' इन्स्क्रिप्शन्स ऐट श्रवणबेल्गोल ' नामक पुस्तककी भूमिकामें, अनेक प्राचीन शिलालेखों और ' राजावलीकथे' आदिके आधारपर अन्तिमश्रुतकेवली श्रीभद्रबाहुस्वामिका समाधि स्थान कर्णाटकदेशके अन्तर्गत श्रवणबेलगोल नामक नगर के ' चंद्रगिरि' पर्वतकी, जिसे 'कटवप्र ' और ' कल्बुप्पु ' भी कहते हैं, एक गुफामें बतलाया है । साधारण जनताका भी ऐसा ही विश्वास है । इसी लिए वह स्थान एक तीर्थस्थान माना जाता है। हरसाल सैकड़ों यात्री उस स्थानकी वंदनादिक करनेके लिए वहाँ जाते हैं । इन्हीं सब बातोंको लेकर
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जैन सिद्धान्तभास्कर' ने भी अपनी किरणोंद्वारा उसे प्रकाशित किया है, अन्यथा उसके माननीय ' भद्रबाहुचरित्र में इसका कोई उल्लेख नहीं है । चरित्रलेखक रत्ननन्दिने इस विषय में, सिर्फ इतना ही लिखा है कि “ दक्षिणदेशको संघसहित जानेके लिए प्रस्तुत हुए श्री भद्रबाहुस्वामि उज्जयिनीसे चलकर विहार करते हुए जब एक गहन अटवीमें पहुँचे तब उन्हें एक ' आकाशवाणी ' सुन पड़ी । उसपर निमित्तज्ञानद्वारा विचार करनेसे उन्हें मालूम हो गया कि उनका अन्त निकट है, आयु थोड़ी रह गई है । तब उन्होंने समस्त मुनिसंघको विशाखाचार्य के आधिपत्यमें सौंपकर उसे
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