Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 42
________________ जैनहितैषी - ७१० बनाया हुआ है और कब बना है, इसका निर्णय होनेकी ज़रूरत है । विद्वानोंको इस विषयमें प्रयत्न करना चाहिए । ( ३० ) भद्रबाहुका समाधि स्थान । " मिस्टर बी. लेविस राइस साहबने अपनी ' इन्स्क्रिप्शन्स ऐट श्रवणबेल्गोल ' नामक पुस्तककी भूमिकामें, अनेक प्राचीन शिलालेखों और ' राजावलीकथे' आदिके आधारपर अन्तिमश्रुतकेवली श्रीभद्रबाहुस्वामिका समाधि स्थान कर्णाटकदेशके अन्तर्गत श्रवणबेलगोल नामक नगर के ' चंद्रगिरि' पर्वतकी, जिसे 'कटवप्र ' और ' कल्बुप्पु ' भी कहते हैं, एक गुफामें बतलाया है । साधारण जनताका भी ऐसा ही विश्वास है । इसी लिए वह स्थान एक तीर्थस्थान माना जाता है। हरसाल सैकड़ों यात्री उस स्थानकी वंदनादिक करनेके लिए वहाँ जाते हैं । इन्हीं सब बातोंको लेकर “ 1 जैन सिद्धान्तभास्कर' ने भी अपनी किरणोंद्वारा उसे प्रकाशित किया है, अन्यथा उसके माननीय ' भद्रबाहुचरित्र में इसका कोई उल्लेख नहीं है । चरित्रलेखक रत्ननन्दिने इस विषय में, सिर्फ इतना ही लिखा है कि “ दक्षिणदेशको संघसहित जानेके लिए प्रस्तुत हुए श्री भद्रबाहुस्वामि उज्जयिनीसे चलकर विहार करते हुए जब एक गहन अटवीमें पहुँचे तब उन्हें एक ' आकाशवाणी ' सुन पड़ी । उसपर निमित्तज्ञानद्वारा विचार करनेसे उन्हें मालूम हो गया कि उनका अन्त निकट है, आयु थोड़ी रह गई है । तब उन्होंने समस्त मुनिसंघको विशाखाचार्य के आधिपत्यमें सौंपकर उसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100