Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 28
________________ ६९८ Jain Education International जैनहितैषी - हुआ अंजनाके बलशाली, तेजस्वी बालक हढगात ॥ ( ९९ ) इतनेमें ही सिंहगर्जना, एकाएक हुई भारी । प्रतिधुनिसे सारे जंगलमें कोलाहल छाया भारी ॥ ( १०० ) चिल्ला उठी अंजना इससे, भय खाकर अपने मनमें। इतनेमें ही व्योमयान इक, आया इसके ढिग पलमें ॥ ( १०१) उससे उतरे नृप प्रतिसूरज, पूछा उनने इसका हाल । बातें कर, जाना यह तो है सती अंजना मेरी बाल ॥ ( १०२ ) अपना परिचय देकर बोले, तव मामा प्रतिसूरज हूँ । टी, घरको चलो, चलें अब, चलनेको मैं उद्यत हूँ ॥ ( १०३ ) ' अच्छा चलिए ' कह सब बैठे, जल्दी चलने लगा विमान ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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