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जैनहितैषी -
हुआ अंजनाके बलशाली, तेजस्वी बालक हढगात ॥
( ९९ )
इतनेमें ही सिंहगर्जना,
एकाएक हुई भारी ।
प्रतिधुनिसे सारे जंगलमें
कोलाहल छाया भारी ॥
( १०० )
चिल्ला उठी अंजना इससे,
भय खाकर अपने मनमें।
इतनेमें ही व्योमयान इक,
आया इसके ढिग पलमें ॥ ( १०१)
उससे उतरे नृप प्रतिसूरज,
पूछा उनने इसका हाल ।
बातें कर, जाना यह तो है
सती अंजना मेरी बाल ॥ ( १०२ )
अपना परिचय देकर बोले,
तव मामा प्रतिसूरज हूँ । टी, घरको चलो, चलें अब,
चलनेको मैं उद्यत हूँ ॥ ( १०३ )
' अच्छा चलिए ' कह सब बैठे, जल्दी चलने लगा विमान ॥
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