Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 35
________________ देष। . ७०३ १० नम्रतासे दिया गया उत्तर क्रोधकी आँधीको भी छूमन्तर कर देता है। ११ यदि किसी पर क्रोधित होनेका मौका आवे तो स्मरण रक्खो कि तुमसे स्वयम् भी कभी भूल हुई होगी। १२ सब आनन्दोंमें दूसरोंको पहले सम्मिलित करो। १३ जब कभी तुमसे हो सके अच्छे सञ्चालनका श्रेय दूसरोंको दो । भैय्यालाल जैन । देष। वे ष एक बड़भारी अवगुण है । जिस पुरुषमें - यह अवगुण हो उसे पशुसे भी गया बीता जानना चाहिए । इसका अर्थ पूर्ण रीतिसे समझना हो तो एक उदार प्रेमी और एक नीच द्वेष रखनेवाले मनुष्यके मुँहकी ओर देखो । एकके मुखपर तुमको उज्ज्वल आनन्द दृष्टिगोचर होगा, दूसरेके मुँहपर गुर्राते हुए कुत्तेके समान क्रूरता नजर पड़ेगी। एक कुत्ता भी द्वेष रखनेवाले पुरुषसे उत्तम है; क्योंकि पशुओंमें तो द्वेष, वैर मँजानेके समयतक ही रहता है-वह उनके मनमें सर्वदा घुला नहीं करता, किन्तु मनुष्यके हृदयमें तो द्वेष, गहरेसे गहरे भागमें दुष्ट कीड़ेके समान प्रवेश करके उसकी उत्तमताका नाश कर देता है। द्वेष रखनेवाला पुरुष, दूसरेका तो नुकसान जब कर सकता है, तब Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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