Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 26
________________ ६९४ जैनहितैषीmmmmmwwwwwwwmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmwww पर, ऐसी है, इसी लिए तो, नहीं पवनजयको भाती ॥" (८९) कहा किसीने “वाह वाह जी, क्या ऐसा हो सकता है ? बड़ी सुशीला है वह, उसके लिए व्यर्थ जग बकता है ॥ " . (९०) " तुम हो भोले भाले भाई, त्रियाचरित तुम क्यो जानो। जो छल कपट अंजना करती, कहो उन्हें तुम क्या जानो ॥" धीरे धीरे ऐसी बातें, पहुँची राजा रानीको । उनको हुआ बड़ा भारी दुख, हो दुख क्यों नहिं मानीको ! (९२) रानी केतुमती झट आई, अपनी पुत्रवधूके पास । गर्भवती जब उसको देखी, लगी डालने तब निश्वास ॥ (९३) कोप अंजना पर कर भारी, . ... उसको दिया तुरन्त निकाल । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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