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पर, ऐसी है, इसी लिए तो,
नहीं पवनजयको भाती ॥"
(८९) कहा किसीने “वाह वाह जी,
क्या ऐसा हो सकता है ? बड़ी सुशीला है वह, उसके
लिए व्यर्थ जग बकता है ॥ " .
(९०) " तुम हो भोले भाले भाई,
त्रियाचरित तुम क्यो जानो। जो छल कपट अंजना करती,
कहो उन्हें तुम क्या जानो ॥"
धीरे धीरे ऐसी बातें,
पहुँची राजा रानीको । उनको हुआ बड़ा भारी दुख,
हो दुख क्यों नहिं मानीको !
(९२) रानी केतुमती झट आई,
अपनी पुत्रवधूके पास । गर्भवती जब उसको देखी,
लगी डालने तब निश्वास ॥
(९३) कोप अंजना पर कर भारी, .
... उसको दिया तुरन्त निकाल ।
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