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" तेज नाथका ग्रहण किया है " और कहा - " अपने उरमें” ॥
( ८४ )
." इसी लिए स्वामी बिनती है,
निज मुद्रा मुझको दीजे ।
रिपुको जीत नाम पा जल्दी, दासीकी फिर सुध लीजे ॥ " (८५)
दासी नहीं सुन्दरी तू है,
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मेरे प्राणोंकी प्यारी |
चिन्ता न कर शीघ्र आता हूँ, रिपुबल मर्दन कर प्यारी ॥
( ८६ )
यों कह निज मुद्रा दे खुश हो,
गया पवनजय निज दलमें ।
इधर, अंजना खुशी हुई अति,
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पतिप्रेम पाकर दिलमें ॥ (८७)
थोड़े ही दिन भीतर बातें,
लगीं फैलने चारों ओर ।
हुई अंजना गर्भवती है,
पाप किया इसने अति घोर ॥ (८८)
कोई कहने लगा " अंजना
बड़ी सती थी कहलाती ।
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