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जैनहितैषी -
मेरे सब शृंगार आप हो, मेरे सब भूषण हो आप || (७९)
मैं इन चरणोंकी दासी हूँ, मेरे हो प्रभु प्राणाधार ।
जीवनधन हो आनंदघन हो,
सरबस हो मेरे सरदार ॥ ( ८० )
भूल चूक अपराध हुए हों,
मुझसे उन्हें क्षमा करिए ||
हूँ अबला अनजान मूढ़ मैं,
मेरे दोष न हिय धरिए ॥ ( ८१ )
सुनी अंजनाकी मृदुवाणी,
हुआ पवनजय बड़ा प्रसन्न ! हँसी खुशीमें समय बिताया,
मा बापोंसे रह प्रच्छन्न ॥ ( ८२ )
वीरवेशमें सजा हुआ था ।
जाना था रणको चढ़कर ।
पीछा जाने लगा सैन्यमें,
तभी अंजनाने नमकर - ॥
( ८३ )
' स्वामीकी जय हो जय हो ' कह, जय - कंकण बाँधा करमें ।
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