Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 24
________________ ६९२ Jain Education International जैनहितैषी - मेरे सब शृंगार आप हो, मेरे सब भूषण हो आप || (७९) मैं इन चरणोंकी दासी हूँ, मेरे हो प्रभु प्राणाधार । जीवनधन हो आनंदघन हो, सरबस हो मेरे सरदार ॥ ( ८० ) भूल चूक अपराध हुए हों, मुझसे उन्हें क्षमा करिए || हूँ अबला अनजान मूढ़ मैं, मेरे दोष न हिय धरिए ॥ ( ८१ ) सुनी अंजनाकी मृदुवाणी, हुआ पवनजय बड़ा प्रसन्न ! हँसी खुशीमें समय बिताया, मा बापोंसे रह प्रच्छन्न ॥ ( ८२ ) वीरवेशमें सजा हुआ था । जाना था रणको चढ़कर । पीछा जाने लगा सैन्यमें, तभी अंजनाने नमकर - ॥ ( ८३ ) ' स्वामीकी जय हो जय हो ' कह, जय - कंकण बाँधा करमें । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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