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प
जैनहितैषी -
लगे टहलने ले प्रहस्तकों,
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तीरों तीर पवनजय वीर ॥
( ६९ )
वहाँ नजर आया चकवेकों,
झपट ले गया पक्षी बाज | चकवी तड़प तड़प जी देती,
करती हुई आर्त आवाज ॥
( ७० )
उड़ती कभी कभी भूतल पर
गिरती पड़ती चलती थी ।
अपनी छायाको जलमें लख,
चकवा जान लपकती थी ॥ ( ७१ )
चकवा कहाँ कहाँ चकवी थी,
चकवा तो तज गया जहान । चकवीका दुख लखा न जावे,
थी संकटमें उसकी जान ॥ ( ७२ ) इस घटनासे पवनंजयके,
दिलपर असर पड़ा भारी ।
लगा कोसने अपने को हीं,
मैं हूँ दुष्ट बड़ा भारी ॥ (७३)
मम वियोग में मेरी प्यारी,
क्या क्या दुख न उठाती है ।
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