Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 27
________________ अंगया। . • तथ्य कथन, मुद्रा दिखलाना, उसका इसने माना जाल । (९४ ). गई कोसती हुई गर्भको, दुखिया पापोंकी मारी। अपने मातपिताके घरपर, तिरस्कार पाई भारी ॥ (१५.) पा अपमान चली जंगलमें, निराधार दुखिया बाला। दुख-सुख-संगातिन थी सँगमें, . प्यारी सखि वसन्तमाला॥ . (९६) प्रथम गर्भिणी, फिर वह वन-महि, ... ... चला न कुछ भी जाता था। कठिनाईसे राम राम कर . कुछ कुछ पद उठ पाता था । (९७) धीरे धीरे शैल-गुफातक पहुँची, पहुँची मुनिके पास। कुशल पूछ वचनामृत सुनकर मनमें बँधा इसे विश्वास ॥ चैत्र शुक्ल अष्टमी तिथिको बीती जब थी आधी रात । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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