Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 12
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 31
________________ अंजना। ६९९ . मिल जावे अब पवन हमारा, तब यह जीवन अच्छा है। (११४) बार बार ऐसा कहकहकर, __ पछताते थे नृप प्रह्लाद। केतुमती आँसू बरसाती, रोती थी कर बातें याद ॥ (११५) हाय शुद्धशीलाको हमने, घरके बाहर दिया निकाल । अपने पैरों आप कुल्हाड़ी, मारी किसको कहिए हाल ॥ . (११६) समझा बुझा इन्हें प्रतिसूरज, ____ कहने लगा करो मत देर । खोज़ लगावें भलीभाँतिसे, लावें शीघ्र पवनको हेर ॥ (११७) सभी चले नृप महेन्द्रको भी, अपने सँगमें बुलवाया। खोजा जहाँ तहाँ आखिरमें, . सघन गहन वनमें पाया ॥ (१९८) ध्यान लगाकर उस जंगलमें, बैठा था निश्चल होकर । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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