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अंजना।
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. मिल जावे अब पवन हमारा,
तब यह जीवन अच्छा है।
(११४) बार बार ऐसा कहकहकर,
__ पछताते थे नृप प्रह्लाद। केतुमती आँसू बरसाती,
रोती थी कर बातें याद ॥
(११५) हाय शुद्धशीलाको हमने,
घरके बाहर दिया निकाल । अपने पैरों आप कुल्हाड़ी,
मारी किसको कहिए हाल ॥
. (११६) समझा बुझा इन्हें प्रतिसूरज,
____ कहने लगा करो मत देर । खोज़ लगावें भलीभाँतिसे,
लावें शीघ्र पवनको हेर ॥
(११७) सभी चले नृप महेन्द्रको भी,
अपने सँगमें बुलवाया। खोजा जहाँ तहाँ आखिरमें, .
सघन गहन वनमें पाया ॥
(१९८) ध्यान लगाकर उस जंगलमें,
बैठा था निश्चल होकर ।
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