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जैनहितैषी
प्रिये प्रिये मनमें रटता था,
दिखता था कोरा पंजर ॥
(११९) कहा पिताने प्यारे बेटा,
उठो उठो क्या करते हो। माता पिता श्वसुर सब जनका, - दुख क्यों नहिं उठ हरते हो ॥
(१२०) " प्यारी, प्यारी, प्रिये अंजना,
आ, मिल," सहसा बोल उठा। पर जब देखा पूज्य पिताको,
सकुचाया नत होय उठा ॥
(१२१) माता देखी ससुरा देखा,
मामी-ससुरा भी देखा। देखा सब कुछ पर न प्रियाको
इधर उधर झाँका देखा ॥
(१२२) प्रतिसूरजने कहा “ कृपाकर,
. सब मेरे घरको चलिए । वहाँ अंजना बाट देखती
होगी, उसका दुख हरिए ॥"
(१२३) हनूद्वीपको सभी गये तब, .
हुआ वहाँ पर मँगलाचार।
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