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जैनहितैषी
यह आर्थिक विषयोंमें बड़ा निपुण था। इसने मारवाड़के कोषकी नींव बहुत पक्की डाल दी थी। निम्नलिखित पदसे इस बातका पता लगता है कि मारवाडके आदमी इसका कितना आदर करते थे__"बक फटत बैरियां, हक जशरा होय ।
सुत बहादर रे सिरे, किशना जैसा न कोय" ॥ ' भण्डारियोंके रीति रिवाज अन्य ओसवालोंके समान ही हैं। उनकी आसपूरा देवीका मन्दिर नाडौलमें है जहाँपर वर्षमें दो बार मेला लगता है। कहा जाता है कि जब लाखाके कोई सन्तानोत्पत्ति न हुई तब उसने देवीसे प्रार्थना की कि हे माता मुझे एक पुत्र दे। देवीने उसकी इस प्रार्थनापर प्रसन्न होकर उसको चौबीस पुत्ररत्न दिये । भण्डारी लोग कभी काली गाय, काली बकरी अथवा काली भैंसको नहीं खरीदते । हाँ, यदि कोई भेटमें दे तो बड़े हर्षसे ले लेते हैं। __ भण्डारी लोग वाणिज्यकी अपेक्षा राज्यसेवाको पसन्द करते हैं। दीपावत, मानावत, लुनावत, निवावत इत्यादि उनकी भी कितनी ही जातियाँ हैं। इनमें आपसमें शादी विवाह नहीं होते। भण्डारियोंकी स्त्रियोंमें बड़ा परदा है। अन्य ओसवालोंकी भाँति वे मस्तक पर · बोर' आभूषणको नहीं पहनतीं।
-नाथूराम जैन ।
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