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अंजना ।
अंजना ।
( अंक ५, ६ से आगे । )
( ५४ )
पड़े दिन तक तो परिजनने, पाया नहीं यही संवाद ।
नहीं अंजनाको छूता है,
पवनकुमार धार सुविषाद ॥ (५५)
पर धीरे धीरे यह सबको,
जान पड़ा दुख है भारी ।
सब सुखयारी समझें जिसको,
वही अंजना दुखियारी ॥ (५६)
रहती रात दिवस चिन्तामें,
कब देंगे दर्शन स्वामी ।
कब होगी पूरी अभिलाषा,
कब पाऊँगी सुख नामी ॥ (५७)
रोती कभी कभी दुख पाती,
ती कभी दीर्घ निश्वास ।
अछताती पछताती दुखिया,
तज देती थी जीवन - आश ॥ ५८ ) बरसों बीत गये दुखियाको, पाये नहिं नीके दर्शन ।
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