SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - ६८६ जैनहितैषी यह आर्थिक विषयोंमें बड़ा निपुण था। इसने मारवाड़के कोषकी नींव बहुत पक्की डाल दी थी। निम्नलिखित पदसे इस बातका पता लगता है कि मारवाडके आदमी इसका कितना आदर करते थे__"बक फटत बैरियां, हक जशरा होय । सुत बहादर रे सिरे, किशना जैसा न कोय" ॥ ' भण्डारियोंके रीति रिवाज अन्य ओसवालोंके समान ही हैं। उनकी आसपूरा देवीका मन्दिर नाडौलमें है जहाँपर वर्षमें दो बार मेला लगता है। कहा जाता है कि जब लाखाके कोई सन्तानोत्पत्ति न हुई तब उसने देवीसे प्रार्थना की कि हे माता मुझे एक पुत्र दे। देवीने उसकी इस प्रार्थनापर प्रसन्न होकर उसको चौबीस पुत्ररत्न दिये । भण्डारी लोग कभी काली गाय, काली बकरी अथवा काली भैंसको नहीं खरीदते । हाँ, यदि कोई भेटमें दे तो बड़े हर्षसे ले लेते हैं। __ भण्डारी लोग वाणिज्यकी अपेक्षा राज्यसेवाको पसन्द करते हैं। दीपावत, मानावत, लुनावत, निवावत इत्यादि उनकी भी कितनी ही जातियाँ हैं। इनमें आपसमें शादी विवाह नहीं होते। भण्डारियोंकी स्त्रियोंमें बड़ा परदा है। अन्य ओसवालोंकी भाँति वे मस्तक पर · बोर' आभूषणको नहीं पहनतीं। -नाथूराम जैन । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522809
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy