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________________ जैनोंकी राजभक्ति और देशसेवा। ८८५ शत्रुका सामना किया; परन्तु शोक है कि वह लौटते समय मार डाला गया। ५ गंगाराम । यह विजयसिंहके समय (सन् १७५२-९२ ईस्वी) में हुआ । यह केवल राजनीतिज्ञ ही नहीं था बरन् बहादुर सिपाही भी था । यह मेड़ताके युद्धमें भी गया था जो सन् १७९० ईस्वीमें मरहठों और राठौरोंके बीचमें हुआ था। . ६ लक्ष्मीचन्द । यह महाराजा मानसिंहके राज्यकालमें (सन् १८०३-४३) दीवान पद पर आसीन रहा । इसको जागीरमें एक गाँव मिला था जिसकी आय २००० रुपयोंके लगभग थी। ७ बहादुरमल । यह महाराजा तख्तसिंहके समयमें (सन् १८४३-७३ ) हुआ । सम्भवतया मुत्सद्दीवंशमें यह सबसे अन्तिम था । इसका महाराजाके ऊपर ऐसा प्रभाव पड़ा हुआ था कि यथार्थमें लोग इसीको मारवाडका राजा मानते थे । यह बात इसकी कीर्तिको और भी बढ़ाती है कि राजा और प्रजा दोनोंकी भलाई करनेमें जिनका प्रेम इसकी नस नसमें भरा हुआ था, इसने कोई भी बात उठा नहीं रक्खी । इसी कारणसे वहाँकी प्रजा इससे बहुत ही प्रसन्न और आह्लादित रहती थी । नमकके ठेकेके काममें इसने जो कुछ सेवा की थी उसके लिए मारवाड़ी प्रजा चिरकाल तक इसका आभार मानती रहेगी । सन् १८८५ ईस्वीमें सत्तर वर्षकी अवस्थामें इसका स्वर्गवास हो गया। .. '८ किशनमल । यह महाराजा सरदारसिंहसे पहले राजा . तथा महाराजा सरदारसिंहके राज्यके प्रारम्भमें कोषाध्यक्ष था । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522809
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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