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उपदेशसिद्धान्तरत्नमाला और षष्ठिशतप्रकरण। ६८१
Awana
यदि कोई कहे कि भागचन्दजीने दोनों सम्प्रदायोंके लाभके लिए मध्यस्थभावसे यह भाषाटीका की होगी, तो यह ठीक नहीं । क्योंकि कुछ गाथायें ऐसी हैं-उदाहरणार्थ ५ वीं और ३३ वीं गाथा-जिनकी टीकामें भट्टारकोंके साथ साथ श्वेताम्बरसाधुओंपर भी वस्त्रधारी होनेके कारण आक्रमण किया है और इससे साफ़ मालूम होता है कि उन्होंने केवल दिगम्बरियोंके उद्देश्यसे टीका रची है । ___ कुछ भी हो, पर. यह निश्चय है कि उपदेशसिद्धान्तरत्नमाला श्वेताम्बर-ग्रन्थ है और उसका वास्तविक नाम ‘पष्ठिशतप्रकरण' है और इसी लिए दिगम्बरसम्प्रदायके किसी भी ग्रन्थमें न उसका कहीं उल्लेख है और न उसकी कोई गाथा उद्धृत की गई है। ६००-७०० वर्षका बना हुआ ग्रन्थ अवतक छुपा रहता, यह संभव नहीं जान पड़ता।
अस्तु । ग्रन्थ किसी सम्प्रदायका हो; परन्तु हमारी समझमें यह दोनों ही सम्प्रदायके कामकी चीज़ है और इस कारण इसका दोनों ही सम्प्रदायोंमें अधिकताके साथ प्रचार होना चाहिए। शिथिलाचारियोंकी दोनों ही सम्प्रदायोंमें कमी नहीं है। उनको राहपर लानेके लिए यह आवश्यक है कि हमारे श्रावक भाई गुरुके स्वरूपको जान जावें और इसके लिए उपदेशसिद्धान्तरत्नमाला तथा षष्ठिशतककी दो दो चार चार हजार प्रतियाँ मुफ्तमें बाँटी जानी चाहिए।
आशा है कि विद्वान् पाठक इस लेखको ध्यानसे पढ़ेंगे और
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