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जैनोंकी राजभक्ति और देशसेवा ।
नाडौलका किला दिखाया जाता है। कहते हैं कि इसे लाखाने ही बनवाया था । लाखा बड़ा ही सौभाग्यशाली पुरुष था। उसके चौवीस पुत्ररत्न थे। उनमें से एकका नाम दादराव था । वही भण्डारी कुलका जन्मदाता है। कहा जाता है कि राजघरानेके भण्डारका प्रबन्ध दादरावके हाथमें था। इसी कारणसे इसकी सन्तान भण्डारीके नामसे प्रसिद्ध हो गई । विक्रम सम्वत् ११४९ अथवा ई० सन् ९९२ में यशोभद्रसूरिने दादरावको जैनधर्म ग्रहण कराया था और उसके कुलको ओसवाल जातिमें मिलाया था।
भण्डारी लोग मारवाड़में रावजोधाके समय ( १४२७-८९, ई० ) से रहते हैं जिसकी उन्होंने भारी सेवा की थी। अपने सेनापति नर भण्डारीकी अधीनतामें ये लोग जोधाके लिए मेवाडकी सेनासे झिलवाड़े, लड़े थे और उन पर विजय प्राप्त की थी। जबसे ये लोग जोधपुरमें आये उसी समयसे दर्बारमें इनकी बड़ी मानता रही और ये बड़े बड़े उच्च पदोंपर नियुक्त रहे । संघवियोंकी भाँति ये भी असि मसि, अर्थात् तलवार और कलमके धनी थे तथा जोधा घरानेके सच्चे भक्त और उपासक थे। ये लोग अब भी राज्यके सच्चे सेवक समझे जाते हैं। अब हम पाठकोंको उन भण्डारियोंका संक्षिप्त परिचय कराते हैं जिन्होंने युद्धमें नाम पैदा किया था ।
१ रघुनाथ । यह महाराजा अजीतसिंहके समयमें ( १६८०१७२५ ईस्वी) हुआ । महासजने इसे दीवानके पद पर नियुक्त करके राज्यसम्बन्धी सम्पूर्ण कार्योंको इसे सौंप
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