Book Title: Jain Dharm Mimansa 02
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 13
________________ समर्पण महात्मा महावीर की सेवा में महात्मन् ! आपने अनेकान्त देकर समन्वय सिखाया, धर्म को वैज्ञानिक बनाया, अन्धश्रद्धा हटाई, परीक्षकता बढ़ाई, सुधारक मनोवृत्ति पैदा की, पर आपके पीछे इन बातों की ऐसी प्रतिक्रिया हुई कि जिनने आपके जीवन के और साहित्य के मर्म को समझा उनका हृदय रोने लगा उन्हीं रोनेवालों में से मैं भी एक हूँ । मेरी शक्ति थोड़ी थी पर आपके जीवन ने कुछ ऐसा साहस दिया कि उस प्रतिक्रिया को दूर करके, विकार को हटाने की इच्छा मैं न रोक सका, इसी इच्छा का फल यह मीमांसा है । इस में थोड़ी बहुत भूल हुई होगी पर यह जैनत्व के दर्शन के मार्ग में बाधा नहीं चल सकती । पद-चिह्न देखकर राह चलनेवाले के पैर पद - चिह्नों पर न भी पड़ें तो भी राह कुराह नहीं होती इसी आशा पर यह साहस किया हैं और इस का फल आपके चरणों में समर्पित कर रहा हूँ । आपका पुजारी - दरबारीलाल सत्यभक्त

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