Book Title: Jain Bhanu Pratham Bhag
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Jaswantrai Jaini

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Page 15
________________ ( ७ ) सही है, बाकी के सही नहीं । तटस्थ - यह तो सेवकों ने अपने दिल को खुश करने वास्ते लिख दिया है । विवेचक - यदि यह वात सस है तो इसका सुधारा कर देना योग्य है और आगे के वास्ते अपने सेवकों को ऐसे अनुचित काम करने से रोक देना योग्य है । तटस्थ - अस्तु भवितव्यं भवसेव - विचित्रा गतिः कर्मणाम्कर्मों की गति विचित्र है, इस संसार में कर्मों के वश से जीव की क्या क्या विटंबना नहीं होती है, "गतं न शोचामि कृतं न मन्ये" परंतु यह बताओ कि जो कुछ ससार्थचंद्रोदय में लिखा है, सो जैन शास्त्रानुकूल जैनशैली के अनुसार यथार्थ है या नहीं ? विवेचक - शोक ! अतीव शोक ! यदि जैनशास्त्रानुकूल जैनशैली के अनुसार होता, तो यह उद्यम ही क्यों होता ? अतः जो कोई मनुष्य पक्षपात की दृष्टि को त्याग कर देखेगा उसको साफ साफ नजर आवेगा, अन्यथा - " रागांधा नैव पश्यन्ति द्वेषांधाश्च तथैव हि " यह न्याय तो बना ही पड़ा है परन्तु यदि यथार्थ कथन किसी को मिथ्यात्वज्वर के प्रताप से न रुचे तो उस जीव के भाग्य की ही बात है, करीर के वृक्ष में पत्ते नहीं लगते तो इसमें वसंत ऋतुका क्या दोष है ? घू घू (उल्लू - घूबड़ ) पक्षी दिन में नहीं देखता तो सूर्य का इस में क्या दोष है ? जल की धारा चातकपक्षी के मुख में नहीं पड़ती तो इस में मेघ का क्या दोष है ? अपने २ भाग्य की ही बात है ! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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