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पार्वती के लेखानुसार स्वामी जी ने झटपट लिख दिया कि भाषा भी लिखनी नहीं आती है ? यदि लिख भी दिया होवे तो इस से तो यह सिद्ध होता है कि स्वामीजी को ही पूर्वोक्त बात का ज्ञान नहीं था ? जो उन्होंने ऐसा लिख दिया कि भाषा भी लिखनी नहीं आती है-मूर्ख के स्थान में मूर्ष लिख दिया है ! क्या स्वामी जी मूर्ख शब्द को भाषा और मूर्ष को संस्कृत मानते थे, यदि ऐसे होवे तब तो स्वामी जी के ज्ञान का कुछ मान ही नहीं रहेगा ! जब कि स्वामी जी स्वतः भूल खागये तो और की भूल किस प्रकार बता सकते हैं ? अस्तु, क्या पार्वती जी स्वामी जी की बराबरी कर सकती है ? नहीं, कदापि नहीं, परंतु स्वामी जी के नाम की सहायता लेकर महात्मा श्री महाराज आत्मारामजी की अवज्ञा करने को तत्पर हुई है जिसका तात्कालिक फल यहां ही यह मिल गया है कि जिस से अपनी अज्ञानता और अयोग्यता विद्वज्जनसमूह में प्रकट कर बैठी, यदि पार्वती की पोथी देखी जावे तो आश्चर्य नहीं कि जितने पृष्ठ हैं उतने ही अशुद्धियों से भरे होवें ॥
यद्यपि पार्वती की अशुद्धियें निकालनी हमको उचित नहीं हैं, क्योंकि वह अबला है ? तथापि परीक्षक पुरुषों को ख्याल कराने वास्ते नमूनामात्र केवल दो पृष्ठ की कुछ अशुद्धियें लिखते हैं जिससे पार्वती जी की विद्वत्ता की परीक्षा होजावेगी। पृष्ट अशुद्धम्
शुद्धम् मिथ्यात्व
मिथ्यात्व बस्त्र मुखबस्त्रिका
मुखवास्त्रिका सर्वदा
वस्त्र
सर्वदा
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