________________
( ८३
)
व्याकरण का पढ़ना जरूरी है ॥ ढुंढिये माधु प्रायः व्याकरण नहीं पढ़ते हैं तो इस से साफ जाहिर है कि वह स्वतः नहीं समझ सकते हैं कि अमुक शब्द का क्या अर्थ है ? हां बेशक भाषा में लिखा अर्थ, जिनको टब्बा कहते हैं, उसको घोक घोक कर अपना निर्वाह करते हैं, यही कारण है कि जैनी साधुओं और ढुढियों में कितने ही शब्दों के अर्थों में फरक पड़ता है, क्योंकि जैनी साधु प्राचीन टेका जो संस्कृत प्राकृत में विद्यमान हैं मानते हैं, और जहां कहीं प्रमाण देने की जरूरत पड़ती है प्राचीन टीका का ही प्रमाण देते हैं परंतु ढुंढियों के पान इस बात की गंध भी नहीं है इसीलिये पंडितों की सभा में ढाढये पराजय को प्राप्त होते हैं !
विवेचक-प्रमथ श्रीअनुयोगद्वार सूत्रका पाठ क्रम से पढ़ो और विचारो कि यह पाठ व्याकरण के शास्त्र के बोध विना ठीक ठीक समझ में आ सकता है ?
(१) श्रीअनुयोगदार सूत्र में छै प्रकार व्याख्या का लक्षण प्रतिपादन किया है
तथाहिसंहिया य पयं चेव, पयत्थो पयविग्गहो चालणा य पसिध्धीय, छव्विहं विधि लक्खणं ॥१
व्याख्य-तत्र व्याख्यालक्षणमेव तावदाह । संहियायेत्यादि । तत्रास्वलित पदोच्चारणं संहिता यथा करोमि भयांत सामायिकमित्यादि । इहतु करोमीर के पदं भयांत इति द्वितीयं सामायिकमिति तृतीयं इत्यादि । पदार्थस्तु करोमीत्यभ्युगमो भयांत इति गुमिंत्रणं समस्यायः समायः समाय एव सामायिकमित्यादिकः । पदविग्रह
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com