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( १८ ) भावार्थ-सम्यग्दृष्टि के ग्रहण किये मिथ्यासूत्र सम्यक सूत्र हैं, और मिथ्याष्टि के ग्रहण किये सम्यक् सूत्र मिथ्यासूत्र हैं। मतलब कि सम्यग्दृष्टि गुरुगम्यता टीकादि के अनुसार नय नय की अपेक्षा परमार्थ को ग्रहण कर लेता है, इसवास्ते सम्यग्दृष्टि की अपेक्षा मिथ्या शास्त्र भी सम्यक् शास्त्र हैं, और मिथ्यादृष्टि विपरीत श्रद्धावाला होने से टीकादि के अर्थ को छोड़ प्राचीन पद्धति को तोड़-अपनी मनि कल्पना का अर्थ जोड़-छिद्र ग्रहण करने की तरफ ही दृष्टि को मोड़ना है। इसवास्ते मिथ्याष्टि की
ओक्षा सम्यक् शास्त्र नी मिथ्या शास्त्र हैं। सो यही बात पार्वती के किये ऊन पटांग अथों में ज्यों की त्यों पाई जाती है।
इति तपगच्छाचार्य श्रीमद्विजयानन्दमूरिशिष्य महोपाध्याय
श्रीमल्लक्ष्मीविजयशिष्योपाध्याय श्रीमदर्ष . विजय शिष्य श्रीमद् वल्लभविजय
विरचित जैनभानु नाम्नो ग्रन्थस्य प्रथमो भागः
समाप्तः ॥
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