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सम्मति देते हुए अपना ही सिद्धांत खंडित कर दिया !- नीति का वाक्य है " कुसंगासंगदोषेण साधवो यांति विक्रियाम् " सो पंडित जी महाराज ! आपके साथ भी ऐसा ही बना है, अच्छा पंडित जी साहिब ! स्वामीदयानंदजी साहिब तो अपने बनाये सत्यार्थप्रकाश में जगह २ जैनशास्त्रों के प्रमाणसहित पूजा का वर्णन करते हैं, और आप सम्मति देते हैं कि जैनशास्त्रों में पूजा नहीं है, तो अब विचारना योग्य है कि आप में से झूठा कौन ? आप वा आपके गुरु ?
पार्वती के उत्सूत्र का विचार ।
तटस्थ - आप इन विचारे पंडितों को क्या कहते हैं ? इनका तो यह हाल है “ जहां देखां तवा परात ऊहां गावां सारी रात परंतु आप पार्वती के लेख की विवेचना करें ?
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विवेचक - " बेशक ! जैनशास्त्रों से तथा जैनशैलि से प्रायः बिलकुल अनभिज्ञ इन पंडितों के विषय में तो हमको केवल इतना ही कहना है कि आंखें बंद करके सम्मतिप्रशंसापत्र प्रदान करने की जो चेष्टा की है सो उनको कलंकित करती है । परंतु पार्वती जैनशैलि से अनजान होकर भी जानकारों में अपनी टांग फँसाना चाहती है, इस बात पर हमको अतीव अफसोस प्रकट करना पड़ता है क्योंकि भगवान् की मूर्ति में चार निक्षेप उतारने की जो चालाकी दिखाई है बिलकुल जैनसिद्धांत से विरुद्ध है । जैनशास्त्रों में पार्वती की कल्पनानुसार निक्षेपों का वर्णन ही नहीं है, सो विस्तार सहित पूर्व लिखा गया है, इसवास्ते निक्षेपविषेय में बार वार लिखना पिष्टपेषण करना है. और यदि इस बात का घमंड तो जिसप्रकार निक्षेपों की बाबत पार्वती ने कल्पना की है, किसी
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