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क्योंकि पार्वती ने स्वामीश्रीआत्मारामजी का लिखा व्याकरण पढ़ने सम्बन्धि श्रीप्रश्नव्याकरण सूत्र का लेख असत्य करने के इरादे से अस्तोव्यस्त मतलब विना का ढकौंसला मारा है “ उक्त सूत्र में तो पूर्वोक्त वचन की शुद्धि कही है यों तो नहीं कहा कि संस्कृत बोले विना सत्य व्रत ही नहीं होता है" परंतु जरा आंख मीट के सोचना तो था कि मैं क्या लिखने लगी हूं, इस लेख से मैं आप ही झूठी हो जाऊंगी. मेरे ही मुख में खांड दीजावेगी, क्या अशुद्धवचन बोलने वाले को झूठ बोलने का दोष नहीं लगता है ? बराबर लगता है . तो फिर साबत होचुका कि शुद्धवचन बोलने वाले का सत्य व्रत आराधन होता है, अशुद्ध वचन बोलने वाले का नहीं, जब यह सिद्ध हुआ तो स्वामी श्रीआत्मारामजी का लिखा ठीक २ सत्य सिद्ध होगया, और पार्वती का लिखा बिलकुल असत्य सिद्ध होगया, यदि यह बात नहीं है अर्थात् वचन चाहे शुद्ध बोले, चाहे अशुद्ध, झूट बोलने का दोष नहीं लगता, ऐसा पार्वती का निश्चय है तो पार्वती को साधु और पूज्य सोहनलाल जी को साध्वी कहने वालों को पार्वती के माने मूजिब दोष नहीं लगना चाहिये ? बस ऐसे होने पर पुल्लिंग, स्त्रीलिंग, नपुंसकलिंग(मुज़कर, मुवन्नस, मुखन्नस ) एक वचन द्विवचन बहुवचन-(वाहिद, जमा) अतीत, वर्तमान, अनागत-(माज़ी, हाल, मुस्तविल) इत्यादि रीति (कायदों) के बताने वाले व्याकरण (ग्रामर) के बताने वाले सब झूठे हो जावेंगे, क्या जरूरत है ? जो मरज़ी में आवे सो कह देवे? फिर क्या कारण है कि परीक्षा लेने वाले (इंस्पेटकर) उलटा कहने वाले लड़के को झूठा ठहरा कर नापास (फेल) करदेते हैं ? इंस्पेकटर साहिब ! ज़रा पार्वती ढूंढकनी के
कहने पर भी आप को ख्याल रखना होगा ! अफसोस है पार्वती Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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