Book Title: Jain Bhanu Pratham Bhag
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Jaswantrai Jaini

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Page 84
________________ ( ७४ ) पर कपड़ा न बांधे तो बहुत जीव मरें कपड़ा बांधने से न्यून मरते हैं। ( उत्तर ) यह भी तुम्हारा कथन युक्तिशून्य है क्योंकि कपड़ा बांधने से जीवों को अधिक दुःख पहुंचता है जब कोई मुख पर कपड़ा बांधे तो उसका मुख का वायु रुक के नीचे वा पार्श्व और मौनसमय में नासिका द्वारा इकट्ठा होकर वेग से निकलता है उससे उष्णता अधिक होकर जीवों को विशेष पीड़ा तुम्हारे मतानुसार पहुंचती होगी । देखो जैसे घर वा कोठरी के सब दरवाजे बंद किये वा पड़दे डाले जायें तो उष्णता विशेष होती है खुला रखने से उतनी नहीं होती वैसे मुख पर कपड़ा बांधने से उष्णता अधिक होती है और खुला रखन से न्यून वैसे तुम अपने मतानुसार जीवों को अधिक दुःखदायक हो और जब मुख बंद किया जाता है तब नासिका के छिद्रों से वायु रुक इकट्ठा होकर वेग से निकलता हुआ जीवों को अधिक धक्का और पीड़ा करता होगा । देखो ! जैसे कोई मनुष्य अग्नि को मुख से फूकला और कोई नली से तो मुख का वायु फैलने से कम बल और नली का वायु इकट्ठा होने से अधिक बल अग्नि में लगता है वैसे ही मुख पर पट्टी बांधकर वायु को रोकने से नासिका द्वारा अति वेग से निकलकर जीवों को अधिक दुःख देता है इससे मुखपट्टी बांधने वालों से नहीं बांधने वाले धर्मात्मा हैं। और मुख पर पट्टी बांधने से अक्षरों का यथा. योग्य स्थान प्रयत्न के साथ उच्चारण भी नहीं होता निरनुनासिक अक्षरों को सानुनासिक बोलने से तुमको दोष लगता है तथा मुख पट्टी बांधने से दुर्गंध भी अधिक बढ़ता है क्योंकि शरीर के भीतर दुर्गध भरा है । शरीर से जितना वायु निकलता है वह दुर्गंधयुक्त मसक्ष है जो वह रोका जाय तो दुर्गध भी अधिक बढ़ जाय जैसा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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