Book Title: Jain Bhanu Pratham Bhag
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Jaswantrai Jaini

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Page 82
________________ ( ७२ ) लिख दिया है और “ दिगंबराः " बहुवचन के स्थान में “दिगंबरः" एक बचन लिख दिया है, तो क्या पार्वती के निश्चय के अनुसार स्वामी दयानंदजी साहिब को लिंग का या वचन का ज्ञान नहीं था ? क्या वह संस्कृत या भाषा को नहीं जानते थे? नहीं बराबर जानते थे. फिर क्या कारण है जो ऐसी भूल खाई ? इसवास्ते स्वामी दयानंद साहिब का नाम लेकर जो अपने आपको बचाना चाहा है सो पार्वती की बड़ी भारी भूल है, और यदि पार्वती का यह ख्याल है कि स्वामीदयानंद साहिब ने लिखा है इसवास्ते ठीक है विश्वास के योग्य है, तो प्रथम तो पार्वती के पास स्वामी जी का लेख प्रमाण के योग्य कोई नहीं है केवल ठाकुरदास भावड़ा गुजरांवाला निवासी के पास पत्र देखा था लिखकर किनारे होगई है, परंतु लो देखो, हम आपको स्वामी श्रीदयानंद सरस्वती जी के ही लेख दिखाते हैं यदि पार्वती को स्वामी जी के लिखने पर निश्चय है तो इन बातों को सस मानकर इन पर अमल कर लेवे। अन्यथा पार्वती के निश्चय में फरक पड़ जावेगा, और यदि स्वामी जी के लेख का पार्वती को निश्चय नहीं है तो फिर स्वामी दयानंद जी साहिब का नाम लेकर दूसरों की बाबत अबे तबे क्यों लिखती है ? देखो, स्वामी दयानंदजी सन् १८७५ के छपे ससार्थप्रकाश के ४०१ पृष्ठोपरि लिखते हैं कि-"जे दुढिये होते हैं उनके केश में जूआं पड़ जाय तोभी नहीं निकालते और हजामत नहीं बनवाते किंतु उनका साधु जब आता है तब जैनी लोग उसकी दादी मौंछ और सिर के बाल सब नोच लेते हैं जो उस बक्त वह शरीर कंपाये अश्या नेत्र से जल गिरावे तब सब कहते हैं कि यह साधु नहीं भया है"॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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