Book Title: Jain Bhanu Pratham Bhag
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Jaswantrai Jaini

View full book text
Previous | Next

Page 80
________________ ( ७० ) तथा अखबार जीवनतत्व ( देवसमाज लाहौर ) १० सितं बर सन् १९०५ में लिखा है कि : सवाल - बेशक मालूम होता है कि आर्यसमाज के स्वामी दयानंद स्वामी भी इसी किसम के मतप्रचारक थे ? जवाब- इसमें क्या शक है - वेदों के ईश्वरचित बनाने के बारे में उनको कुल मनघड़ गये और उनके मंत्रों के अर्थों का उलटफेर साफ तौर से ज़ाहिर करता है कि स्वामी साहिब मोसूफ भी ऐसे ही " महर्षि " थे कि जिनके ख्याल में किसी मज़हब के फैलाने के लिये झूठ और रियाकारी का हस्वमौका इस्तेमाल न सिर्फ दुरुस्त और मुनासिब है वल्कि बहुत काबले तारीफ भी हैमतलब देखिये यही दयानंद साहिब शंकराचार्य के वेदांत मत का खंडन और जैनियों के साथ उनके शास्त्रार्थ का बयान करके अपनी किताब सत्यार्थप्रकाश तबै दोयम के २८७ सफा पर क्या कुछ तहरीर फर्माते हैं : 66 अब इसमें विचारना चाहिये कि अगर जीव और ब्रह्म की एकता और जगत् का झूठ मूठ होना शंकराचार्य जी का सचमुच अपना अकीदा था तो वह अच्छा अकीदा नहीं है और अगर जैनियों के खंडन के लिये उन्होंने उस अकीदा को इखतीयार किया है तो कुछ अच्छा है" ॥ अब देखिये यहां पर स्वामी दयानंद साहिब अपने आपको अपने असल रंग रूप में ज़ाहिर करते हैं यानी वह कहते हैं कि अगर शंकराचार्य जी का जो उनके कौल के बमूजिव वैदिक मज़sa के कायम करने वाले थे-जीव ब्रह्म की एकता और जगत का मिथ्या यानी झूठ मूट होना सिदक़ दिल से अपना यकीन या Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124