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( ८० ) अशुद्धियें रह गई हैं ! सो इस बात का मान करना या दूसरे पर दोष लगाना प्रत्यक्ष महामूर्खता है ! वादिनी शब्द के दकार का इस्त्र इकार और अंतका अक्षर नकार दो छापने में रह गये । दीर्घ ईकार दकार के साथ लग गया इस से वल्लभविजय को लिंगज्ञान नहीं है यह पार्वती का कहना बिलकुल योग्य नहीं है, अगर वल्लभावजय को लिंगका पता न होता तो हुई के ठिकाने भी होगया लिखा होता ! क्या वहां पार्वती हाथ पकड़ने को गई थी? और अगर छापे की गलती पर ख्याल न किया जाये तो पार्वती ने वादिनी के ठिकाने वादिना लिखा सिद्ध हो जावेगा ! क्योंकि पार्वती की पोथी में वादिना छपा हुआ है,सो पार्वती आपही सोच लेवे कि किस लिंग का कौनसा वचन हो सकता है ? यह इस पास्ते लिखा है कि पार्वती कुछ व्याकरण में अपनी टांग फसाती भुनी जाती है ! वरना पार्वती के लिये ऐसी बात लिखना हम को योग्य नहीं है, और वल्लभविजय जी की बाबत अधिक निश्चय करना होवे तो अपने स्वामी जी उदयचंद जी से ही करलेना! क्योंकि उनको अच्छी तरह अनुभव हो चुका है कि एक वल्लभाविजय जी को जवाब देने के लिये सात पंडितों की सहायता स्वामी उदय चंद जी को लेनी पड़ी थी ! तो भी अभिप्राय पूरा नहीं हुआ ! इस बात से नामा शहर के ब्राह्मण, क्षत्रीय, बानीये, मुसलमान सर्व प्रायः पाकिफ हैं, अथवा उस अवसर पर हाज़र हुए निज ढूंढकसेवकों हीको शपथ देकर पूछलेवे कि सच बतावो वल्लभावजय जी की कितनी शक्ति है।
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