________________
( २४ ) तटस्थ-जरा कृपा करके आप नय और नयाभास के लक्षण पूर्वर्षिप्रणीत बताइये जिससे ज़रा हृदयचक्षु को खोल यदि परलोक का डर हो तो देख और विचार के अपनी अनुचित प्रवृत्ति का शुद्ध अंतःकरण पूर्वक मिथ्यादुष्कृत दे देवे नहीं तो जो कुछ हाल होवेगा मुख से कहना कठिन है ॥
विवेचक-लीजिये,
नयलक्षणं यथा-नीयते येन श्रुताख्यप्रमाण विषयीकृतस्यार्थस्यांशस्तदितरांशौदासीन्यतः स प्रतिपत्तुरभिप्रायविशेषो नयः ॥ नयाभासलक्षणं ॥ स्वाभिप्रेतादंशादितरांशापलापी पुनर्नयाभासः ॥
इति प्रमाणनयतत्वालोकालंकारे।
बस पूर्वोक्त लक्षणों से साबत होता है कि पार्वती का मानना 'नय' नहीं है, किन्तु 'नयाभास' है ? क्योंकि मदोन्मत्ता हस्तिनी की तरह अपने अभीष्ट अंश को स्वीकार अन्यांश का सत्यानाश किया है, परन्तु यह नहीं विचारा कि इस श्रद्धा के अनुसार तो सर्व व्यवहार का ढुंढियों को उच्छेद ही करना पड़ेगा। तथा पार्वती ने अपनी माया फैला कर अनजान लोगों को धोखा देने में कुछ न्यूनता नहीं की, पाठ कोई लिखा है, इशारा कोई किया है, और अर्थ कोई घसीटा है, देखो-६ पृष्ठ पर क्या लिखा है ? "इस द्रव्य आवश्यक के ऊपर ७ नय उतारी हैं* जिस में तीन सत्य नय कहीं हैं यथा सूत्र । तिण्ह सदनयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थू । अर्थ-तीन सत्य नय इत्यादि"
*जरा पंडितानी की पडिताई का ख्याल इस पर भो कर लेना . 'नय' शब्द पुजिग है, जिसको प्राय: सर्वत्र स्त्रो लिंगमें लिख दियाहै। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com