Book Title: Jain Bhanu Pratham Bhag
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Jaswantrai Jaini

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Page 43
________________ ( ३५ ) ही बस्तु माना है यदि ऐसे नहीं है तो पार्वती का लिखा कि 'तीन नयवालों ने इन दोनों को अवस्तु माना है' कदापि सिद्ध नहीं होवेगा ॥ अच्छा ! लो अब नामस्थापना के विषय में सूत्रप्रमाण भी दिखाते हैं : श्रीभगवती सूत्र, उववाइय सूत्र, रायपसेणीय सूत्रादि अनेक जैनशास्त्रों में तीर्थंकर भगवान् के नाम गोत्र के सुनने का भी बड़ा. भारी फल लिखा है । यथा : " तं महाफलं खलु भो देवाशुप्पिया तहा रूवाणं अरिहंताणं भगवंताणं नाम गोयस्सवि सवणयाए " । इत्यादि पूर्वोक्त पाठ से अरिहंत भगवंत का नाम भी फल का देनेवाला सिद्ध होगया और श्रीठाणांग सूत्र के चौथे ठाणे में नाम सत्यं कहा है “ णाम सच्चे " इति वचनाव - तथा श्री ठाणांगसूत्र के दशमें ठाणे में भी दश प्रकार के सत्य में नामसत्य कहा है तथाच " तत्पाठः । 66 दसविहे सच्चे पण्णत्ते । तं जहा । जणवय सम्मय ठवणा णामे रूवे पडुच्च सच्चे य ववहार भाव जोगे दसमे उवम्म सच्चे य " ॥ १ ॥ दश प्रकार का सत्य तीर्थकर भगवान् ने फरमाया है सो यह है - देश सत्य ( १ ) सम्मत सत्य ( २ ) स्थापना सत्य (३) नाम सत्य (४) रूप सत्य (५) प्रतीत्य सत्य (६) व्यवहार सत्य ( ७ ) भाव सत्य (८) योग सत्य (९) और दशवां उपमा सत्य (१०) सूत्रों में ऐसे २ सत्य बताने वाले पाठ आते हैं, परंतु जिसकी दृष्टि में असत्य फैल रहा होवे उसको जहां वहां असत्य ही भान होता है, जैसे पीलीया रोगवाला जो कुछ देखता है उसको पीला ही दीखता है, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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