Book Title: Jain Bhanu Pratham Bhag
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Jaswantrai Jaini

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Page 60
________________ ( ५० ) कर द्रव्यनिक्षेप को हाथ जोड़ लेवें और कदाग्रह से मुख को मोड़ लेवें तो इनका निस्तारा होसकता है अन्यथा नहीं। और यदि ऐसा उनके दिल में जमा हुआ है कि अतीत काल में जैसे रिहंत थे वैसे अपने दिलमें कल्पना करके उनको हम वंदना करते हैं तो वह जाने,मरज़ी में आवे सो कर लेवें, परंतु यदि सूक्ष्मदृष्टि से विचारा जावे तो इस में तो स्थापना नियम करके सिद्ध होगई,फिर जो कहते हैं कि स्थापना कुछ नहीं है,वंदन के योग्य नहीं है,सो कैसे सिद्ध होवेगा? और स्थापना के माने विना तो जैनशास्त्रानुसार कोई भी करणी सिद्ध नहीं होवेगी, जिसमें भी खास करके दिन और रात्रि के तथा पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण तो कदापि ठीक २ सिद्ध नहीं होवेंगे, क्योंकि पडिक्कमण में तीसरा वंदनाआवश्यक होता है, जिसमें गुरु महाराज को वंदना करना होता है, सो गुरु महाराज की अनुपस्थिति में वंदना किस प्रकार पूरी होवेगी ? जैसे कि इस वक्त पार्वती की दूसरीवार की गुरुणी "मेलोजी" मौजूद है [पहिली गुरुणी तो "हीरां" थी ] सो प्रायः करके तो पार्वती उसके साथ रहती ही कम है, तथापि जब कभी पार्वती उसके साथ होती होवेगी, तब तो अवश्य ही उसको वंदना करती होवेगी, परंतु उस समय मेलोजी, तथा मेलोजी के अभाव में पार्वती किसको वंदना करती होगी? इस बात का विचार ज़रा पक्षपात के परदे को उठा कर ज़रूर करना योग्य है, तथा जैसे श्रीपूज्य अमरसिंघजी की संप्रदायमें इस समय सर्वोपरि पूज्य सोहनलालजी हैं, वह प्रतिक्रमण में वंदना आवश्यक के समय किसको वंदना करते हैं ? और किस रीति तीसरा वंदना आवश्यक का आराधन किया जाता है ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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