Book Title: Jain Bhanu Pratham Bhag
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Jaswantrai Jaini

View full book text
Previous | Next

Page 69
________________ ( ५८ ) में घंटों तक बैठी रहती हैं, काम पड़े स्वामी जी धार्मिक वातीलाप भी करते हैं, इत्यादि बातों में इतना बुरा नहीं समझा जाता है, और जिस मकान में स्त्री की मूर्ति हो उस मकान में रहना साधु के लिये बुरा समझा जाता है सो क्या बात है ? यदि कोई उत्त चित्रलिखित स्त्री से किसी प्रकार की अपनी इच्छा पूरी करनी चाहे, तो कदाचिदपि नहीं हो सकती है, खाना पीना उससे नहीं मिल सकता, बालना चालना उससे नहीं हो सकता है, दिल की खुशी उससे हासल नहीं हो सकती है, कोई वह चित्र लिखित स्त्री साधु के गले चिपट नहीं जाती है, फिर क्या हेतु है जो शास्त्रकार निषेध करते हैं ? केवल चित्त की एकाग्रता के लगने से मन में बुरा ख्याल पैदा होने के भय के और कोई भी मतलब सिद्ध नहीं होगा, क्योंकि यद्यपि साक्षात् स्त्री का सन्मुख होना पूर्वोक्त कार्यों में होता है, परंतु वहां चित्त की एकाग्रता करने का अवसर साधु को मुश्किल से मिल सकता है, और मकान में जो तसवीर होवेगी उसको बारबार देखने से चित्त एकाग्र तल्लीन होजावेगा, जिससे मन में बिगाड़ होने का पूरा पूरा भय है, इसीलिये साधु के वास्ते शास्त्रकारों ने निषेध किया है. "विना प्रयोजनं मंदोपि न प्रवर्तते " विना किसी मतलब के मूर्ख भी कोई काम नहीं करता है तो क्या शास्त्रकारों की आज्ञा विना मतलब कभी हो सकती है ? नहीं, कदापि नहीं, बस इसीतरह श्रीजिनेश्वरदेव की प्रतिमा मूर्ति (तमवीर ) भी मन की एकाग्रता करने के वास्ते एक बड़ा भारी अवलंबन है, और इसीलिये किसी प्रकार श्रीजिनप्रतिमा का दर्जा साक्षात् श्रीतीर्थकर भगवान् से बढ़कर शास्त्रों में फरमाया मालूम देता है। जैसाक साक्षात् श्रीतीर्थकर भगवान् की वंदना करने के समय “देवयं चइयं" पाठ आता है, जिसका तात्पर्य यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124