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( ६५ ) ( ४ ) हे पुण्यात्मन् ! आपने मेरे ऊपर जो उपकार किया है उसके बदले में कृतज्ञता के चिन्ह रूप यत्र से प्राप्त किये इस पुस्तक को श्रद्धापूर्वक मैं आपको अर्पण करता हूं-कलकत्ता २२ अप्रेल १८९०
तथा-दी वर्लडस पार्लिमेंट आफ रिलिजन्स ) इस नाम के शहर लंडन में छपे पुस्तक के २१ वें सफे पर श्रीमुनि आत्मारामजी महाराज का फोटो दिया है, और उसके नीचे ऐसे लिखा है :
No man has so peculiarly indentified himself with the interests of the Jain community as Muni Atmaram ji. He is one of the noble band sworn from the day of initiation to the end of life to work day and night for the high mission they have undertaken. He is the high priest of the Jain community and is recognized as the highest living authority on Jain Religion and literature by Oriental Scholars. ____ अर्थ-जैसी खूबी से मुनि आत्मारामजी ने अपने आप को जैनधर्म
के हित में अनुरक्त किया है ऐसे किसी ने नहीं किया, संयमग्रहण करने के दिन से जीवन पर्यंत जिन प्रशस्त महाशयों ने स्वीकृत श्रेष्ठ धर्म में अहोरात्र सहोद्योग रहने का नियम किया है उनमें से आप एक हैं, जैनतमाज के आप परमाचार्य हैं, और प्राच्य विद्वानों ने इनको जैनधर्म तथा जैन साहित्य में सर्वोत्तम ज़िन्दा प्रमाण माना है।
तथा-रायल एशियाटिक सुसाईटी के चुनंदा अंग्रेज विद्वान् ऐ० एफ० रुडाल्फ हार्नल साहिब महात्मा श्रीमद्विजयानंद सूरीश्वरजी ( आत्मारामजी ) महाराजजी की बाबत लिखते हैंShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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