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कारण होजाता है - जैसे भरत चक्रवर्ती का आरिसे भवन में अपने रूपादि को देखने के लिये जाना आस्रव का कारण था, परंतु मुद्रिका के गिरने से अनित्य भावना में तल्लीन होकर झट केवलज्ञान प्राप्त कर लिया || तथा एलापुत्र किस इरादा से घर से निकला था ? और किस पदवी को प्राप्त हुआ ? इत्यादि अनेक दृष्टांत इसकी बाबत प्रसिद्ध हैं और साधु मुनिराज संवर निर्जरा का कारण उनको तकलीफ देने से या उन पर खोटे अध्यवसाय के आने से उस जीव के परिणाम के वश से आस्रव पापकर्म बांधने में वह निमित्त मिल गया, जैसे भगवान् श्रीमहावीर स्वामी को तकलीफ देनेवाला ग्वालिया अपने ही परिणाम के वश से सातवें नरक में गया. इत्यादि बहुत दृष्टांत प्रसिद्ध हैं, परंतु न्यूनता इसी बात की है कि कथा सुनकर तहत वाणी सत्य वचन कहकर रस्ता पकड़ते हैं, उसके असली परमार्थ की तर्फ ख्याल कोई विरला ही करता है, विचारो - कि किसी प्रकार साक्षात् वस्तु से उसकी स्थापना ( नकल) में नुकसान जानकर ही शास्त्रकारने उससे बचना जरूरी फरमाया है, जिसका पाठ और असली मतलब विचारने योग्य है. और वह पाठ श्रीदशवैकालिकादि सूत्रों में प्रसिद्ध है, तथा नायः सर्व जैनी लोग जानते हैं और बराबर मंजूर करते हैं कि " जिस मकान में स्त्री की मूर्ति होवे उस मकान में साधु - बिलकुल न रहे " इस बात को विचारना योग्य है कि साधु गृहस्थों के घरों में भिक्षा लेने के वास्ते जाते हैं, जहां महादेवी स्त्री मोहिनी रूप धारण किये साक्षात् मौजूद होती है वहां स्त्रियों के हाथ से भोजन पानी लेते हैं, स्वामी जी के दर्शन करने को छनन २ करती स्वामी जी के मकान में आती हैं, व्याख्यान
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