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( ५१ ) क्योंकि इनके गुरुजी तो काल कर गये हैं, और इनसे बड़ा इस वक्त अन्य कोई इस संप्रदाय में है नहीं, आपही पूज्यजी महाराज होने से बड़े हैं-सुनने में आया है कि जब पूज्यजी महाराज और लालचंदजी की भेट हुई, तब पूज्यजी ने लालचंदजी को वंदना की थी, यदि यह बात वास्तव में सत्य है तो जैनशास्त्र, तथा लौकिक प्रथा के विरुद्ध है, अच्छा, हमें क्या, हमारा तो असली पक्ष वंदना का है. चाहे सोहनलालजी बड़े बने रहें, और चाहे लालचंदजी बने रहें, वंदना तो दोनों को अवश्यमेव गुरु को करनी ही पड़ेगी, और दोनों के गुरु या गुरु स्थानीय कोई बड़े नहीं हैं तो अब बताना चाहिये यह किसको वंदना करते हैं ? और विना वंदना के तीसरा आवश्यक कैसे सधेगा ? और तीसरे आवश्यक के साधे विना षडावश्यक के संपूर्ण न होने से पूर्वोक्त पांच प्रतिक्रमण (दैवसिक, रात्रिक, पाक्षिक चातुर्मासिक और सांवत्सरिक ) कैसे सिद्ध होवेंगे ? यदि कहो कि जो गुरु प्रथम थे उनको वंदना करते हैं तो वह इस वक्त साधु के या गुरु के भावनिक्षेप में हैं नहीं, क्योंकि वह तो मर के परमात्मा जाने किस गति में कैसी दशा में होचेंगे, तो भी उनके विचार के अनुसार देवलोक में देवता हुए होवेंगे, और वहां श्रीजिनप्रतिमा की सेवा पूजा भक्ति में तत्पर होवेंगे क्योंकि पूजा का करना देवता का अवश्य कृस ढुंढकमतानुयायी पुकारते हैं, तो फिर जिनप्रतिमा के महा दुश्मन होकर जिनप्रतिमा के पूजनेवाले देवतों को नमस्कार करते हैं यह कहते हुए ढुंढकमतानुयायी की ज़बान किस तरह चलेगी?
और देवता असंयति हैं, उनको संयति होकर वंदना करनी यह भी स्वीकार न होगा। तो फिर अब बताओ वंदना किसको होगी, ?
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