________________
(
४०
)
ही मूढमति हैं ! जोकि विना विचारे ऊतपटांग जो कुछ दिल में आया बक दिया ॥ देखो ! पृष्ठ८ की दूसरी पंक्ति में क्या पत्थर लिख मारा है, इंद्र का नाम “सहस्रानन" किस ढुढककोश या पुराण में लिखा है ? मालूम होता है कि लिखते समय मुख का पाटा आंख पर आगया होगा !! अनी ज़रा सोच विचार के कलम चलानी ठीक है परंतु महात्माओं की अवज्ञा करनेवालों के दिल में शोच विचार कहां से होवे ?
तटस्थ-बेशक, महात्माओं की अवज्ञा करने का और उन प्रति बहुमान न करने का यही फल होता है,इसबात पर एक दृष्टांत भी है,यथा-एक सिद्धपुत्र के दो शिष्य थे, दोनों ही गुरु का विनय करते थे, परंतु एक गुरू का बहुमान करता था अर्थात् गुरु के ऊपर एक की अंतरंग प्रीति थी, और दूसरा गुरु का बहुमान बिलकुल नहीं करता था । दोनों ही जने अष्टांगनिमित्तशास्त्र पढ़कर कुशल होगये, एक दिन की बात है कि दोनों जने घास लकड़ी आदि लेने वास्ते गये,रस्ते में चिन्ह देखकर एकने कहा कि आगे हाथी जाता है. तब दूसरे ने कहा कि यह हाथी नहीं है, हथनी है, और वह बाई आंख से काणी है, उस पर स्त्री और पुरुष सवार हैं, जिसमें औरत गर्भवती है, लाल वस्त्र उसके ऊपर है और जलदी पुत्र को जन्म देनेवाली है, पहिले ने कहा क्यों ऐसा विना देखे असंबद्ध बोलता है ? उसने जवाब दिया कि ज्ञान अनुभवसिद्ध है, आगे सब मालूम होजावेगा. दोनों कितनेक दूर आगे को गये तो सब वैसे ही देखा. और पुत्र प्रसूत हुआ दोनों को मालूम होगया. तब दसरा-इसने यह बात कैसे जानी ? मुझको तो कुछ भी पता नहीं लगा, इस रीति आश्चर्य को प्राप्त होकर उदास होगया. दोनों जने फिरते हुए नदी किनारे पहुंचे, वहां एक
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com