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नुसार निक्षेपों का याथातथ्य ज्ञान होने से कभी भी दिलमें यह शंका नहीं रहेगी कि स्थापना में चार निक्षेप किस तरह हो सकेंगे |
स्थापना में चारों ही निक्षेप का वर्णन |
पूर्वोक्त श्री अनुयोगद्वार सूत्र की आज्ञानुसार जब हरएक त्रस्तु चार २ निक्षेप से विचारनी योग्य है तो क्या स्थापना बाकी रह गई ? जो कुतर्क रूप जाल में भोले आदमी को फंसाने का उद्यम किया है ? देखो !किसी वस्तु की स्थापना ( आकृति - शकल ) देखी जावेगी उसी वक्त उस वस्तु के चारों ही निक्षेप ( भेद ) समझने में आवेंगे, तबही वह स्थापना उस वस्तु की कही जावेगी, और उसका यथार्थ ज्ञान भी तबही होवेगा यदि ऐसा न होवे तो हाथी की स्थापना से घोड़े का ज्ञान होना चाहिये, सो तो कभी भी नहीं होता है, इससे साफ जाहिर होता है कि स्थापना में भी किसी
अपेक्षा वोही चार निक्षेप होते हैं, जोकि वस्तु में होते हैं, क्योंकि स्थापना उस वस्तु का एकांश है. और देश में सर्व उपचार होना यह तो न्यायशास्त्र की प्रथा ही है. इसीतरह नामादि में भी ख्याल कर लेना. जैसे कि - पार्वती - इस नाम को सुनते ही किसी ने यह नहीं निश्चय कर लेना है कि अमुका शंकरपत्नी है, परंतु नामके साथ ही स्थापना द्रव्य और भाव से विचार करने से मालूम होजावेगा कि यह ठीक ईश्वरपत्नी है, तो जरूर ही उसके मानने वाले उसी वक्त सिर झुकानेंगे. और यदि गिरिजा वाले भेद न घटेंगे तो जान लेवेंगे कि अमुका शंकरपत्नी पार्वती नहीं है, किन्तु कोई अन्य औरत है ॥ इसी प्रकार पार्वती सती के मानने वाले पार्वती का नाम सुनकर जब उसके ही नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव का उनके दिल में निश्चय होवेगा तो झट सिर झुकावेंगे, परंतु शंकरपत्नी पार्वती मालूम होने
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