________________
( ३८ )
देखें और सुनें ? जगत् में बैसी कोई वस्तु ही नहीं है कि जो नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव निक्षेप से अर्थात् इन चार प्रकार से खाली होवे ॥ तात्पर्य - जो वस्तु दुनिया में है उसमें नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव यह चार भेद तो अवश्यमेव होवेंगे. जिसमें पूर्वोक्त चार प्रकार नहीं, वह बस्तु ही नहीं, खरशृंगवत्, जैसे गधे का श्रृंग नहीं है तो उसका वाचक व्युत्पत्तिमान् शुद्ध शब्द भी कोई नहीं है कि जिस नाम से खास उसही का ज्ञान होवे, जब नाम नहीं है तो उसकी स्थापना यानि शकल भी किसी किसम की नहीं हो सकती है कि जिस शकल को देखकर गोश्रृंगवत् खरभृंग का ज्ञान होवे, जब नाम और स्थापना नहीं तो द्रव्य पूर्वापरावस्था रूप पर्याय का आधार भी नहीं, जब नाम, स्थापना और द्रव्य नहीं तो भाव तद्गव धर्म भी नहीं, और जब नाम, स्थापना, द्रव्य, और भाव नहीं तो वह पदार्थ भी नहीं, इसी वास्ते श्री अनुयोगद्वार सूत्र में फरमाया है कि जहां जिस जीवादि वस्तु में नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भावादि लक्षण जितने भेद जानने में आवें, वहां उन सर्व भेदों से वस्तु का विचार करना और जहां सर्व भेद न मालूम होवें तो वहां नाम, स्था पना, द्रव्य और भाव इन चारों का तो जरूर निक्षेप करना अर्थात् इन चार प्रकार से वस्तु का चितवन अवश्यमेव करना तथाच तत्पाठ :
जत्थय जं जाणेज्जा निक्खेवं निक्खिवे निरवसेसं । जत्थविय न जाणेज्जा चउकगं निक्खिवे तत्थ । १ ।
व्याख्या - आवश्यकादिशब्दानामर्थो निरूपणीयः स च निक्षेपपूर्वक एव स्पष्टतया निरूपितो भवत्यतोऽमीत्रां निक्षेपः क्रियते तत्र निक्षेपणं निक्षेपो यथा संभव -
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com