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उस समय शकेंद्र का आसन चलायमान हुआ अवधिज्ञान से भगवान् का निर्वाण हुआ जानके मैं भी जाकर भगवान् तीर्थकर का निर्वाण महोत्सव करूं, ऐसा दिल में निश्चय करके शक्रेंद्र ने वंदना नमस्कार किया - सो पाठ यह है :
" तं गच्छामि णं अहंपि भगवतो तित्थगरस्स परिणिव्वाण महिमं करोमित्ति कट्टु वंदइ णमंसइ
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व्याख्या - तद्गच्छामि णामिति प्राग्वत् अहमपि भगवतस्तीर्थकरस्य परिनिर्वाणमहिमां करोमीति कृत्वा भगवंतं निर्वृतं वंदते स्तुतिं करोति नमस्यति प्रणमति यच्च जीवरहितमपि तीर्थकरशरीरमिंद्रवद्यं तद्रिस्य सम्यग्दृष्टित्वेन नामस्थापनाद्रव्यभावार्हतां वंदनीयत्वेन श्रद्धानादिति तत्त्वम् ॥
तथा पूर्वोक्त रीति वंदना नमस्कार करके सर्व सामग्री सहित जहां अष्टापद नामा पर्वत है जहां भगवान् तीर्थंकर का शरीर है, वहां शकेंद्र आया, आकर के उदास हो आनंदरहित अश्रु ( इंजु) करके भरे हैं नेत्र जिसके ऐसा होया हुआ शकेंद्र तीर्थंकर के शरीर को तीन प्रदक्षिणा देता है, प्रदक्षिणा देकर न बहुत नज़दीक और न बहुत दूर इस रीति योग्यस्थान में शुश्रूषा करता हुआ यावत् सेवा
करता है । तथा च तत्पाठ :
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जेणेव अगवए पव्वए जेणेव भगवओ तित्थगरस्स सरीरए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता विमणे
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